रूद्राष्टकम
तुलसीदास कृत शिव रूद्राष्टक स्तोत्र रुद्राष्टकम अर्थात रुद्र + अष्टक। रुद्र अर्थात भगवान शिव, अष्टक अर्थात आठ श्लोकों का समूह। इसलिए, रुद्राष्टकम स्तोत्र यानी भगवान शंकरजी की स्तुति के लिए आठ श्लोक। तुलसीदासजी ने भगवान् शिव की स्तुति के लिए इस स्तोत्र की रचना की थी। गोस्वामी तुलसीदासजी के श्री रामचरितमानस के उत्तर कांड में रुद्राष्टकम स्तोत्र का उल्लेख आता है। रुद्राष्टकम स्तोत्र पढ़ने का लाभ रुद्राष्टकम स्तोत्र में शिवजी के रूप, गुण और कार्यों का वर्णन किया हुआ है। जो मनुष्य रुद्राष्टकम स्तोत्र को भक्तिपूर्वक पढ़ते हैं, भोलेनाथ उन से प्रसन्न होते हैं। उस मनुष्य के दुःख दूर हो जाते है और जीवन में सुख शांति आती है। रुद्राष्टकम स्तोत्र – अर्थसहित 1. मोक्षस्वरुप, आकाशरूप, सर्व्यवापी शिवजी को प्रणाम 🙏🌹 नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्। निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम्॥1॥ नमामीशम् – श्री शिवजी, मैं आपको नमस्कार करता हूँ जो ईशान – ईशान दिशाके ईश्वर निर्वाणरूपं – मोक्षस्वरुप विभुं व्यापकं – सर्व्यवापी ब्रह्मवेदस्वरूप...