सूर्यस्तवराज
श्रीसूर्य उवाच साम्ब साम्ब महावाहो शृणु जाम्बवतीसुत । अलं नामसहस्रेण पठ चेमं शुभं स्तवम् ॥ ३॥ यानि गुह्यानि नामानि पवित्राणि शुभानि च । तानि ते कीर्तियिष्यामि प्रयत्नादवधारय ॥ ४ ॥ भगवान् सूर्य ने साम्ब से कहा — ‘साम्ब ! सहस्रनाम से मेरी स्तुति करने की आवश्यकता नहीं हैं । मैं अपने अतिशय गोपनीय, पवित्र और इक्कीस शुभ नाम को बताता हूँ । प्रयत्नपूर्वक उन्हें ग्रहण करो, उनके पाठ करने से सहस्रनाम के पाठ का फल प्राप्त होगा । मेरे इक्कीस नाम इस प्रकार हैं — सूर्य स्तवराज स्तोत्रम् वैकर्तनो विवस्वांश्च मार्तण्डो भास्करो रविः । लोकप्रकाशकः श्रीमाँल्लोकचक्षुर्ग्रहेश्वरः ॥ ५ ॥ लोकसाक्षी त्रिलोकेशः कर्ता हर्ता तमिस्रहा । तपनस्तापनश्चैव शुचिः सप्ताववाहनः ॥ ६ ॥ गभस्तिहस्तो ब्रह्मा च सर्वदेवनमस्कृतः ॥ ७ ॥ (१) विकर्तन (विपत्तियों को काटने तथा नष्ट करनेवाले), (२) विवस्वान् (प्रकाश-रूप), (३) मार्तण्ड (जिन्होंने अण्ड में बहुत दिन निवास किया), (४) भास्कर, (५) रवि, (६) लोकप्रकाशक, (७) श्रीमान्, (८) लोकचक्षु, (९) ग्रहेश्वर, (१०) लोकसाक्षी, (११) त्रिलोकेश, (१२) कर्ता, (१३) हर्ता, (१४) तमिस्रहा (अन्धकारको नष्ट ...