चरणामृत
श्री चरणामृत....
हमारे पुराणों में कहा गया है कि ‘‘जल तब तक जल ही रहता है जब तक भगवान के चरणों से नहीं लगता है तथा जैसे ही भगवान के चरणों से लगा या स्पर्ष हुआ तब वह अमृत रूप होकर ही चरणामृत बन जाता है।’’
चरणामृत के सम्बन्ध में वामन पुराण में एक प्रसिद्ध कथा है:-
जब विष्णु भगवान का वामन अवतार हुआ और वे राजा बलि की यज्ञशाला में दान लेने गये तब उन्होंने मात्र तीन पग में तीन लोक नाप लिए।
जब उन्होंने पहले पग में नीचे के लोक नाप लिए और दूसरे में ऊपर के लोक नापने लगे तो जैसे ही ब्रह्मलोक में उनका चरण गया तो ब्रह्माजी ने अपने कमण्डल में से जल लेकर भगवान के चरण धोए और फिर चरणामृत को वापस अपने ही कमण्डल में सुरक्षित रख लिया।
वह चरणामृत ही हमारी पवित्र गंगाजी बन गई जो आज भी सारे संसार के पापों को धो रही है।
जब हम बांके बिहारीजी की आरती करते हैं तब गाते हैं:- 'चरणों से निकली गंगा प्यारी जिसने सारी दुनिया तारी'
प्रभु के चरणामृत का केवट का उदाहरण सर्वश्रेष्ठ है:-
दोहा-
पदपखारि जलु पान करि आपु सहित परिवार।
पितर पारु करि प्रभुहि पुनि मुदित गयउ लेई पार॥(श्रीरामचरितमानस)
"केवट ने प्रभु श्रीराम के चरणों को धोकर और सारे परिवार सहित स्वयं उस जल(चरणामृत-चरणोदक) को पीकर पहले उस महान पुण्य के द्वारा अपने पितरों को भवसागर से पार कर फिर आनन्दपूर्वक प्रभु श्रीरामचन्द्रजी को गंगाजी के पार ले गया।"
हम मंदिर में जाते हैं तब पंडितजी हमें चरणामृत देते हैं, शास्त्रों में वर्णित है कि चरणामृत आखिर है क्या:-
अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।
विष्णो पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते॥
इसका अर्थ है कि "भगवान विष्णु के चरणों का अमृतरूपी जल सभी तरह के पापों का नाश करने वाला है। यह औषधि के समान है, जो चरणामृत का सेवन करता है उसका पुनर्जन्म नहीं होता है।"
श्रीरामचरित्मानस में भी चरणामृत का वर्णन किया गया है:-
एक बार बसिष्ट मुनि आए, जहाँ राम सुखधाम सुहाए॥
अति आदर रघुनायक कीन्हा, पद पखारि पादोदक लीन्हा॥ (श्रीरामचरितमानस)
"एक बार मुनि वसिष्ठजी वहाँ आये जहाँ सुन्दर सुख के धाम श्रीरामजी थे।
श्री रघुनाथजी ने उनका बहुत ही आदर सत्कार किया और उनके चरण धोकर चरणामृत लिया।"
चरणामृत श्रद्धापूर्वक हमेशा दाएँ हाथ में लेना चाहिये तथा मन को शांत कर ग्रहण करना चाहिये।
चरणामृत ग्रहण करने के पश्चात् कभी भी उसके बाद हाथ से सिर को पोछना नहीं चाहिये, इससे सकारात्मकता के स्थान पर नकारात्मकता की वृद्धि होती है।
चरणामृत पीकर जीवन में शुभकार्य करने से निश्चित सफलता प्राप्त होती है।
चरणामृत का सिर्फ धार्मिक ही नहीं अपितु चिकित्सकीय महत्व भी है।
आयुर्वेदिक मतानुसार तांबे के पात्र में अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति होती है, जो उसमें रखे जल या चरणामृत में आ जाती है।
तुलसीपत्र इसमें डालने की परम्परा है, जो कि रोगनाशक क्षमता उत्पन्न करता है, तुलसी चरणामृत मेधा-बुद्धि, स्मरण शक्ति वर्द्धक है।
अब आप जब भी देवगृह (मंदिर) जाये तो प्रभु का चरणामृत अवश्य ग्रहण करें।
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