teacher

आज पाँच सितम्बर है यानी शिक्षक दिवस। आज हम सभी उन अध्यापकों, गुरुओं, आचार्यों, शिक्षकों, मास्टरों, टीचरों को बधाइयाँ देते हैं, याद करते हैं, जिन्होंने हमारे जीवन-दर्शन को कहीं न कहीं से प्रभावित किया। गुरू को इश्वर से अधिक महत्व प्राप्त है। गुरू का नाम ज़रूर बदला है, लेकिन हरेक के जीवन में कहीं न कहीं गुरू रूपी तत्व का समावेश ज़रूर है। ज़रूरी नहीं कि गुरू किसी गुरू के चोंगे में ही हो। प्रत्येक का गुरू अलग है। किसी के लिए माँ गुरू है, किसी के लिए पिता तो किसी के लिए मित्र। आज हिन्द-युग्म भी ऐसे ही गुरू के विभिन्न रूपों को अपने प्रतिभागी कवियों की कविताओं द्वारा याद कर रहा है, नमन कर रहा है।



यह दिन मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। मेरी माँ प्रधानाध्यापिका होकर सेवानिवृत्त हुई हैं। मैं गौरखपुर में सेंट पॉल स्कूल में पढ़ती थी। और जन्म भी मेरा इसी दिन हुआ। है ना मज़े की बात कि आज अध्यापक दिवस भी है और मेरा जन्मदिवस भी।

ज्ञ का भी ज्ञान नहींपढ़ना उनका काम नहींऐसे तो हैं शिक्षकविद्या की निकाले खुले आम अर्थी हड़ताल, नारे, अश्लील बातों से कांपे विद्यालय की धरती ऐसे हैं विद्यार्थी जैसे विद्यार्थी वैसे शिक्षकन पढ़ने वाला कोईन है पढ़ाने वाला आये दिन कॉलेज पे लटका रहता तालाटीचर खुश हो गई छुट्टी
स्टूडेंट कहे चलो करें मस्ती गुरु-शिष्य का पवन रिश्ता व्यभिचार में लिप्त हुआ श्रद्धा के काबिल था जोवोही, पथ भष्ट हुआ शिक्षक केलिएशिक्षाव्यापार हुई पढ़ा ट्यूशन उन्हीं से तभी जा के नैय्या पार हुई सरकारी विद्यालयों की हालत जो खस्ती हुई तो गरीबों के हाथों से शिक्षा की डोरी छूट गई प्राइवेट स्कूलों की मँहगी शिक्षा अमीरों की धरोहर बन गई विद्यादान महादान अब कहाँ होता है मेडिकल हो या इंजीनियरिग
मैनेजमेंट हो या संगणक ट्रेनिंग हर विद्या का एक दाम होता है गुरु भी अमीर शिष्यों का पक्षधर होता हैगोविन्द भी अब गुरु को बड़ा (बलिहारी) नहीं कहता है परमुट्ठी में बची रेत से कुछ महान शिक्षक बाकि हैं अभीजिनकी शिक्षा के बदौलतवहाँ पहुँचे हैं हम जहाँ न पहुँचे थे कभी उनके चरणों में चलो शत् शत् नमन करें सभी 

साक्षरता सरगम जीवन कीअ आ इ ई ज्ञान कराया, तुमनेतुम्हें प्रणाम गुरू जी ।धन ऋण गुणा भाग जीवन केभले बुरे का भान कराया, तुमनेतुम्हें प्रणाम गुरू जी ।
षिक्षा बिन पशुवत् है जीवन,दे षिक्षा इंसान बनाया, तुमनेतुम्हें प्रणाम गुरू जी ।भाषा, दृष्टि, नई, सृष्टि कीग्णित और विज्ञान सिखाया, तुमनेतुम्हें प्रणाम गुरू जी क्षण भंगुर नष्वर है जीवनजीवन का इतिहास बनाया, तुमने
तुम्हें प्रणाम गुरू जी ।जीवन में भटकाव बहुत है,अंधकार में मार्ग दिखाया, तुमनेतुम्हें प्रणाम गुरू जी ।
अंतिम सत्य मुक्ति जीवन की,धर्म और आध्यात्म पढ़ाया, तुमनेतुम्हें प्रणाम गुरू जी ।हर किसी का जो व्यक्तित्व निर्माण है| माँपिताकेसाथ गुरु का भी स्थान है| गुरु अथवा शिक्षक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है| वह ही राष्ट्र की संस्कृति का निर्माता है| गुरु शिष्य रिश्ते में गुरु का दायित्व प्रधान है| तो उसका अधिकार शिष्य से पाना सम्मान है| किंतु रिश्ते तो आज भी वही मौजूद हैं| पर दायित्व भी शिथिल है, नहीं सम्मान का वजूद है | शिक्षक दिवस पर हम शिक्षक का सम्मान भले न कर पायें| लेकिन पोलियो दिवसपर उसे घर घर घुमाएं। मतदाता सूचियों के लिए भी शिक्षक काम आता है| लोकसभा से लेकर पंचायत तक के चुनाव भी कराता है| शिक्षा देने के सिवाय दूसरे बहुत काम हैं| बिडंबना कि फ़िर भी शिक्षक नाम है| देश की हवा में फैले भ्रष्टाचार से वह भी नहीं बच पाया है| धन की चमक में वह भी इतना भरमाया है| कि भविष्य निर्माण के दायित्व से मुंह मोड़ रहा है| द्रोणाचार्य सी गुरुगरिमाकोख़ुद ही तोड़ रहा है| फ़िर एकलव्य से शिष्य कहाँ से पाओगे ?सम्मान तो दुर्लभ होगा ही पर शिक्षक फ़िर भी कहलाओगे| प्रणाम मेरेअध्यापक प्रणाममेरेउद्वारक जननीऔरजनकसे ज्यादाआपकासम्मानहै मेराहोनाइत्तिफाक होसकताहैलेकिनमेराबननातो आप कीसाधना का परिणाम है मै जो भी हूँ बना आज सब आपका करम है ..जो कुछ भी बन पाया हूँ मै उसके योग्य तो नहीं थापरआपका आशीर्वाद हर पल साथ रहता हैप्रणाम मेरे संस्थापक प्रणाम मेरे अध्यापकयाद आ रहा है वो प्रार्थना करनाभगवानसे कीआप की साइकिल में पंक्चर हो जाये और आप स्कूल न आ पाएऔर जब कभी आप नहीं आते तो हम ख़ुशी से झूम उठते पर आप ने तोसदैव कामना हमारे भले की ही की होगी प्रणाम उच्च विचारकप्रणाम् मेरे अध्यापक आपकी जुबान से शब्द नहीं हीरे मोती गिरा करते थेहम नादाँ थे जो उनकामोल न समझ पाए आपकी डांट में औचित्य था आपकी मार में प्रेम भावप्रणाम मेरे पथ प्रदर्शकप्रणाम मेरेअध्यापक पदचिन्हों के पीछे-पीछे,आजीवन चलता जाऊँगा |जो राह दिखाई है तुमने ,मैं औरों को  दिखलाऊंगा ||सखी डाली को हरियाली , बेजान को जीवनदान दिया |
काले अंधियारे जीवन को , सौ सूरज से धनवान किया ||परोपकार, भाईचारा,
मानवता, हमको सिखलाई |सच्चाई की है दी मिसाल ,है सहानुभूति क्या दिखलाई ||कान पकड़ उठक- बैठक , थी छड़ियोंकीबरसातहुयी|समझनपायाउसक्षणमैं,अनुशासनकीशुरुआतहुयी||मुखमंडलपरअंगारकभी,आँखोंमेंनिश्छलप्यारकभी|अंतरमेंमाँकीममतथीसोनार कभी, लोहार कभी ||जीवन को चलते रहना है , लौ इसकी झिलमिल जलती है |
जीवन के हर चौराहे पर, बस कमी तुम्हारी खलती है ||जीवन की कठिन-सी राहों पर,आशीष तुम्हारा चाहूँगा|जो राह दिखाई है तुमने,मैं औरों को दिखलाऊंगा ||किसी भी देश का आने वाला कल इसी बात पर निर्भर करता है कि उस कल को दिशा देने वाले कौन हैं. विनोबा भावेविनोबा भावे के बोले गए यह शब्द साफ करते हैं कि किसी भी समाज या देश के लिए शिक्षकों का महत्व कितना अधिक है. समाज की कल्पना बिना शिक्षकों के अधूरी है. शिक्षक सिर्फ वही नहीं है जो आपको किताबी ज्ञान दे बल्कि जीवन के हर पड़ाव पर आपको सही राह दिखाने वाले भी शिक्षक ही होते हैं. हमारा पूरा जीवन ही शिक्षकों को समर्पित होता है लेकिन इसके बावजूद भी गुरु पूर्णिमा और शिक्षक दिवस जैसे विशेष दिनों को हम अपने गुरुओं को ही समर्पित करते हैं.जीवन की आधारभूत जरूरतों रोटी-कपडा के बाद मानव को मानव कहलाने के लिए जिस चीज की जरूरत शायद सबसे ज्यादा होती है वह है-शिक्षा. सरकार भी शिक्षा को देश के विकास की प्रमुख शर्त व राष्ट्रीय चरित्र की गारंटी मानती है. यही कारण है कि देश में हर स्तर पर शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए हर मुमकिन कदम उठाए जा रहे हैं. लेकिन ये कोशिशें उस शिक्षक के बगैर पूरी नहीं हो सकती हैं, जो इस पूरी प्रक्रिया की रीढ है. शिक्षक अक्षरों व मात्राओं का जोड सिखाकर ऐसे इंसान की रचना करता है जो देश की किस्मत को नई दिशा देते हैं. यही कारण है कि 5 सितंबर को भारत मेंशिक्षक दिवस हर वर्ष मनाया जाता है. भारत में गुरु-शिष्य की परंपरा बहुत पुरानी है. भगवान कृष्ण के प्राचीन कथाओं से लेकर आज के हाइटेक जीवन में हमें हर तरफ शिक्षकों की महत्ता दिखाई देती है. भारत में गुरु और शिष्य का रिश्ता एक परंपरा के रूप में बंधा होता है. यहां गुरु अपना ज्ञान शिष्य को देता है तो शिष्य भी गुरु दक्षिणा देकर गुरु का ऋण चुकाने की परंपरा का निर्वाह करता है. गुरु द्रोणाचार्य के बिना अर्जुन को धनुष विद्या का ऐसा ज्ञान नहीं हो पाता तो वहीं अगर रामकृष्ण परमहंस ना होते तो भारतीय संस्कृति का वैश्विक महानाद करने वाले विवेकानंद को सही दिशा कौन देता?लेकिन समय के साथ कई बार गुरु और शिष्य के रिश्ते को नजर लगी है. कभी शिष्यों ने गुरुओं की महिमा को खंडित किया है तो कभी कुछ गुरुओं ने अपनी ओछी हरकतों से गुरु समाज का नाम कलंकित किया है.सिर्फ 05 सितंबर को शिक्षक दिवस मना लेने भर से हम शिक्षकों के प्रति अपना आदर नहीं दर्शा सकते. अगर हमें शिक्षकों का सही आदर करना है तो हमको अपने गुरु का आदर-सत्कार करना चाहिए. हमें अपने गुरु की बात को ध्यान से सुनना और समझना चाहिए.आप आज शिक्षक दिवस मना रहे हैं। दिवसों की भीड़ में एक और दिवस! कहने को मैं आपकी शिक्षिका हूँ, किंतु सच तो यह है कि जाने-अनजाने न जाने कितनी बार मैंने आपसे शिक्षा ग्रहण की है। कभी किसी के तेजस्वी आत्मविश्वास ने मुझे चमत्कृत कर‍ दिया तो कभी किसी विलक्षण अभिव्यक्ति ने अभिभूत कर दिया। कभी किसी की उज्ज्वल सोच से मेरा चिंतन स्फुरित हो गया तो कभी सम्मानवश लाए आपके नन्हे से उपहार ने मुझे शब्दहीन कर‍ दिया। कक्षा में अध्यापन के अतिरिक्त जब मैं स्वयं को उपदेश देते हुए पाती हूँ तो स्वयं ही लज्जित हो उठती हूँ। मैं कौन हूँ? क्यों दे रही हूँ ये प्रवचन? आप लोग मुझे क्यों झेल रहे हैं? आज का दिन हमारा नहीं आपका है, आपके 'कर्तव्य बोध' पर ही हमारे 'अस्तित्व बोध' का प्रश्न टिका है। इस वक्त बहुत-सी काव्य पंक्तियाँ याद आ रही हैं। क्यों न अटलजी की ये पंक्तियाँ आपको भेंट करूँ? 'छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होताटूटे मन से कोई खड़ा नहीं होतामन हारकर मैदान नहीं जीते जातेन ही मैदान जीतने से मन ही जीते जाते हैं।' 

माँ शारदा से प्रार्थना है कि आप मन भी जीतें और मैदान भी... आप आज शिक्षक दिवस मना रहे हैं। दिवसों की भीड़ में एक और दिवस! कहने को मैं आपकी शिक्षिका हूँ, किंतु सच तो यह है कि जाने-अनजाने न जाने कितनी बार मैंने आपसे शिक्षा ग्रहण की है। कभी किसी के तेजस्वी आत्मविश्वास ने मुझे चमत्कृत कर‍ दिया तो कभी किसी विलक्षण अभिव्यक्ति ने अभिभूत कर दिया। कभी किसी की उज्ज्वल सोच से मेरा चिंतन स्फुरित हो गया तो कभी सम्मानवश लाए आपके नन्हे से उपहार ने मुझे शब्दहीन कर‍ दिया। 

कक्षा में अध्यापन के अतिरिक्त जब मैं स्वयं को उपदेश देते हुए पाती हूँ तो स्वयं ही लज्जित हो उठती हूँ। मैं कौन हूँ? क्यों दे रही हूँ ये प्रवचन? आप लोग मुझे क्यों झेल रहे हैं? 

यही प्रश्न संभवत: आपके मानस में भी उठते होंगे। मैडम क्यों परेशान हो रही हैं? उन्हें क्या करना है? वे अपना विषय पढ़ाएँ और चली जाएँ। आपकी गलती नहीं है, पर गलत मैं भी नहीं हूँ। कल तक मैं भी बैंच के उस पार हुआ करती थी। आज सौभाग्यवश इस तरफ हूँ। उस पार रहकर अक्सर कुछ प्रश्न मेरे मन को मथते रहे हैं।

क्या शिक्षक मात्र किताबों में प्रकाशित विषयवस्तु को समझाने का 'माध्यम भर' है? क्यों शिक्षक अपने विद्यार्थियों से मात्र रटी हुई पाठ्‍यसामग्री को ही प्रस्तुत करने की अपेक्षा रखता है? 

विद्यार्थियों के मौलिक चिंतन, प्रखर प्रश्नों व रचनात्मक सोच का क्या इस शिक्षा पद्धति में कोई स्थान नहीं? हमारी शिक्षा प्रणाली की यह विडंबना क्यों है? पुस्तकों में छपा हुआ ही ब्रह्मसत्य है? चाहे वह कितना ही अप्रासंगिक हो। वही शाही फरमान है? शिक्षकों को कक्षा में उसे ही पढ़ देना है और विद्या‍र्थियों को रटकर वही उत्तर पुस्तिका में लिख देना है? 

और जाने-अनजाने उस कँटीली प्रतिस्पर्धा में शामिल हो जाना है, जिसकी अंतिम परिणति है सर्वोच्च अंक? एकता, सद्‍भावना, संस्कार, सहिष्णुता और सौहार्द जैसे सुखद शब्दों से रच-पच इस देश के छात्रों में यह कैसा विषैला बीजारोपण है? क्या दे रहे हैं शिक्षक उन्हें? पिछड़ने का भय और पछाड़ने की दक्षता? ऐसे कुंठित और असुरक्षित मानस के चलते कैसे एक स्वतंत्र व्यक्ति के निर्माण, विकास और रक्षण की कल्पना की जा सकती है? 

क्यों असमर्थ हैं हम यह शिक्षा देने में कि 'तुम भी जीतो, मैं भी जीतूँ? क्यों नहीं निर्मित कर पा रहे हैं हम वह परिवेश, जिसमें हर विद्यार्थी जीता हुआ अनुभव करे। जीत ईर्ष्या पैदा करती है, हार वैमनस्य। 'तुम भी जीतो मैं भी जीतूँ' की भावना के पोषण से ही तो 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' का संस्कार जन्म ले सकेगा।

मैं आपकी हमउम्र शिक्षिका हूँ, फिर भी जब आप लोगों की आँखों में सपनों के समंदर देखती हूँ तो हृदय से कोटि-कोटि आशीर्वाद निकलते हैं। आशीर्वाद की अवस्था नहीं है पर न जाने क्यों शिक्षक होने का अनुपम अहसास मात्र ही मुझे ऐसा करने के लिए बाध्य कर देता है।

मैं आपको कई बार डाँटती हूँ, क्योंकि मुझे दु:ख होता है जब आपको बँधी-बँधाई लीक पर चलते हुए देखती हूँ। उस 'व्यवस्था' का शिकार होते हुए देखती हूँ, जो सीमित पाठ्‍यक्रम देती है और उसमें से भी महत्वपूर्ण प्रश्नों को रट लेने का सबक देती है। तब भावनाओं के अतिरेक में मैं बोलती हूँ - अनवरत्-अनथक...! ताकि आपके मन के तारों को झंकृत कर सकूँ और ओजस्वी बना सकूँ। 

मेरे विद्यार्थियों, आप उस युग में जी रहे हैं, जिसमें स्रोतों की प्रचुरता है, आगे बढ़ने के बहुत से द्वार हैं पर याद रखना, छोटी सफलता के छोटे द्वारों के लिए आपका कद बहुत बड़ा है।

प्रतिस्पर्धा की प्रक्रिया में, ऊँचाई की उत्कंठा में और तेजी की त्वरा में यह मत भूलना कि महत्वपूर्ण सफलता नहीं बल्कि वह रास्ता है जिस पर चलते हुए आप उसे हासिल करते हैं। आपने पढ़ा भी होगा कि जो लोग विनम्रता और नेकी के ऊँचे रास्ते पर चलते हैं उन्हें 'ट्रैफिक' का खतरा कभी नहीं होता।

आप मेरे सुयोग्य सुशील विद्यार्थी हैं, मेरे शिक्षिका होने की सबसे अहम वजह। यदि प्रथम व्याख्‍यान में आपने धैर्य, अनुशासन और गरिमा का परिचय नहीं दिया होता तो आज मैं कहाँ होती शिक्षिका? मेरी समझ, ज्ञान, वैचारिकता और अभिव्यक्ति आपके बेखौफ, बेबाक प्रश्नों से ही तो समृद्ध और विस्तारित हो सकी है।
आपकी प्रफुल्लता ही मेरे अध्यापन की प्रेरणा है। आपकी प्रखर मनीषा और जिज्ञासु संस्कार ही मुझे निरंतर पठन-अध्ययन के लिए उत्साहित करते हैं। आपका स्नेह और सम्मान ही मेरे विश्वास को मजबूती देता है। आज का दिन हमारा नहीं आपका है, आपके 'कर्तव्य बोध' पर ही हमारे 'अस्तित्व बोध' का प्रश्न टिका है। इस वक्त बहुत-सी काव्य पंक्तियाँ याद आ रही हैं। क्यों न अटलजी की ये पंक्तियाँ आपको भेंट करूँ? 
छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता
टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता
मन हारकर मैदान नहीं जीते जाते
न ही मैदान जीतने से मन ही जीते जाते हैं।' 
माँ शारदा से प्रार्थना है कि आप मन भी जीतें और मैदान भी...। 
शुभकामनाओं सहित, 

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