।। श्री कनकधारा स्तोत्रम् ।। (हिन्दी पाठ) अंग हरे पुलकभूषणमाश्रयंती , भृंगागनेव मुकुलाभरणं तमालम | अंगीकृताखिलविभूतिर पांग लीला, मांगल्यदास्तु मम मंगदेवताया || 1 || जैसे भ्रमरी अधखिले कुसुमों से अलंकृत तमाल-तरु का आश्रय लेती है, उसी प्रकार जो प्रकाश श्रीहरि के रोमांच से सुशोभित श्रीअंगों पर निरंतर पड़ता रहता है तथा जिसमें संपूर्ण ऐश्वर्य का निवास है, संपूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी भगवती महालक्ष्मी की वह दृष्टि मेरे लिए मंगलदायी हो।।1।। मुग्धा मुहुर्विदधाति वदने मुरारेः , प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि | माला दुशोर्मधुकरीय महोत्पले या, सा में श्रियं दिशतु सागरसंभवायाः || 2 || जैसे भ्रमरी महान कमल दल पर मंडराती रहती है, उसी प्रकार जो श्रीहरि के मुखारविंद की ओर बराबर प्रेमपूर्वक जाती है और लज्जा के कारण लौट आती है। समुद्र कन्या लक्ष्मी की वह मनोहर मुग्ध दृष्टिमाला मुझे धन संपत्त...