सप्त श्लोकी दुर्गापाठ

आज श्रीदुर्गासप्तशती के पाठ से जुड़ी एक बहुत उपयोगी जानकारी लेकर आए हैं.

नवरात्र आदिशक्ति माता भगवती की पूजा-उपासना का महापर्व है. नवरात्रि में जो लोग मां की विशेष पूजा-उपासना करते हैं उनपर मां की बड़ी कृपा होती है. नवरात्रि में नौ दिन का व्रत रखना और श्रीदुर्गासप्तशती के संपूर्ण 13 अध्यायों के पाठ का बड़ा माहात्म्य बताया गया है.

शास्त्रों में कवच, अर्गला और कीलक के पाठ के उपरांत श्रीदुर्गासप्तशती के सस्वर पाठ से समस्त अमंगलों का नाश होता है. माता की कृपा से सुख-शातिं, यश-कीर्ति, धन-धान्य, आरोग्य, बल-बुद्धि की प्राप्ति होती है.

आदिशक्ति जगत की अधिष्ठात्री देवी हैं. उनकी कृपा से ही सृष्टि का अस्तित्व है. वह परम मातृशक्ति हैं. उनकी प्रसन्नता के बाद संसार में कुछ भी अप्राप्य नहीं रह जाता और भक्तों द्वारा श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ माता को प्रिय है.

परंतु सप्तशती में सात सौ श्लोक हैं जो तेरह अध्यायों में आते हैं.

सभी माता के भक्तों के मन में इच्छा रहती है कि वे कम से कम नवरात्र में तो श्रीदुर्गासप्तशती का नियमित पाठ कर ही लें परंतु सात सौ श्लोकों का पाठ करने में समय लगता है.

बहुत से लोग इस डर से पाठ आरंभ ही नहीं करते कि कहीं वे प्रतिदिन न कर पाएं तो दोष लगेगा. नौकरी आदि की व्यस्तता या सफर में होने के कारण समय की दिक्कत हो जाती है. ऐसे भक्तों को बताना चाहेंगे कि उन्हें परेशान होने की आवश्यकता ही नहीं.

इसका बहुत सरल विकल्प श्रीदुर्गासप्तशती में ही बताया गया है. सिर्फ 10 मिनट की पूजा में पूरी सप्तशती के पाठ का फल ले सकते हैं.

पूर्ण सप्तशती श्लोकों के पाठ में समय काफी लगता है और उसका विधि-विधान भी है. इन सात सौ श्लोकों के में से सात श्लोक ऐसे हैं जो माता को सर्वाधिक प्रिय हैं और उनके पाठ से सपतशती का पाठ मान लिया जाता है.
श्रीदुर्गासप्तशती के पाठ से भक्तों को माता के आशीर्वाद का कवच प्राप्त होता है जो उन्हें अमंगल से बचाकर उनका कल्याण करता है.

ऋषियों ने संपूर्ण सप्तशती में से सिर्फ सात श्लोक निकालकर सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र की रचना की. इन सात श्लोकों में श्रीदुर्गासप्तशती के 700 श्लोकों के फल के महात्मय को संकलित किया गया है.

इसके पाठ को सप्तशती के संपूर्ण पाठ के समान माना जाता है. इसका पाठ करने की छोटी सी विधि है. उस विधि का पालन करते हुए यदि सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ किया जाए तो पाठ पूर्ण माना जाता है.

पाठ कैसे करें आरंभः

-सप्तश्लोकी का का आरंभ करने से पूर्व श्रीदुर्गासप्तशती ग्रंथ का पंचोपचार विधि से पूजन करना चाहिए.

-पंचोपचार अर्थात जल, धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, कुमकुम, सुगंध, नैवैद्य आदि उपलब्ध वस्तुएं अर्पित करनी चाहिए.

– सप्तश्लोकी दुर्गा भी वहां उपलब्ध है.

– यदि आप सभी मंत्रों के उच्चारण आदि में समर्थ नहीं हैं तो कम से कम नीचे दिए गए मंत्र का उच्चारण करते हुए ग्रंथ को धूप-दीप दिखाएं.

– फिर जल छिड़कें, पुष्प अर्पित करें, अक्षत आदि जो भी उपलब्ध सामग्रियां हैं समर्पित करें.

मंत्र

नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:।
नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणता: स्मताम्॥

इसके बाद ग्रंथ को पूरे श्रद्धा और आदरभाव के साथ प्रणाम करें और उनसे हाथ जोड़कर पाठ की अनुमति लें.

अब आप सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ आरंभ कर सकते हैं.

।अथ श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा।।

शिव उवाच :

देवि त्वं भक्त सुलभे सर्वकार्य विधायिनी ।
कलौ हि कार्य सिद्धयर्थम् उपायं ब्रूहि यत्नतः ॥

देव्युवाच :

श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्ट साधनम् ।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बा स्तुतिः प्रकाश्यते ॥

विनियोग :

ॐ अस्य श्रीदुर्गा सप्तश्लोकी स्तोत्र मन्त्रस्य नारायण ॠषिः, अनुष्टुप
छन्दः, श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वत्यो देवताः, श्री दुर्गाप्रीत्यर्थं
सप्तश्लोकी दुर्गापाठे विनियोगः ।

ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा ।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ।।1।।

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेष जन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्य दुःख भयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकार करणाय सदार्द्रचित्ता ।।2।।

सर्वमङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यंम्बके गौरि नारायणि नमोस्तु ते ॥3॥

शरणागत दीनार्तपरित्राण परायणे
सर्वस्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोस्तु ते ॥4॥

सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तु ते ॥5॥

रोगानशेषानपंहसि तुष्टा
रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता हि आश्रयतां प्रयान्ति ॥6॥

सर्वबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यम् अस्मद् वैरि विनाशनम् ॥7॥

॥ इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा सम्पूर्ण ॥
श्रीदुर्गासप्तश्लोकी पाठ का हिंदी रूपांतरण

भगवान शिव ने देवी से कहा-
हे देवी! आप ही सुलभ सहाय हो. समस्त सिद्धियों प्रदान कर मनोकामना पूरी करने वाली हो. कलियुग में भी भक्तों के कार्यों को, सिद्ध करने वाला कोई उपाय कहिए.

देवी बोलीं-
हे देवों के देव. कलियुग में सभी मनोकामनाएं सिद्ध होने वाला उपाय आपसे कहती हूं. आपसे अत्यधिक स्नेह के कारण मैं सर्व कामना सिद्ध करने वाली “अम्बा-स्तुति” बताती हूं.

इस सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र के रचयिता श्रीनारायण ऋषि हैं. इसमें अनुष्टुप छंद हैं. श्रीमहाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती देवता हैं. श्री दुर्गा माता की प्रसन्नता के लिए सप्तश्लोकी दुर्गा नामक स्तोत्र के पाठ का विनियोग करता/करती हूं.

ज्ञानी ध्यानी पर करती माया, मोह में डालती हैं महामाया ।
भय हर लेतीं कर मंगल छाया, जिसने तुम्हें ध्याया सर्व सुख पाया।।

स्वस्थ पुरुष जो तुमको ध्याते, परम पुनीत बुद्धि वे पाते
दुःख दारिद्र भय को हर लेती तुमसा कौन दयालु है माता
तुम नारायणी तुम मंगलकर्ता, तुम्हीं शिवा तुम्हीं कल्याणी भर्ता
सिद्धि-बुद्धि देती मां दुखहर्ता, शरणागत भक्त की कर्ता-धर्ता

तीन नेत्रों वाली माँ गौरी, तुमको बारंबार प्रणाम
सर्वस्वरूपा हे माँ सर्वेश्वरी, हर लो सब क्रोध अरु काम
दीन की रक्षक नारायणी, देती सबके भय को मार
सबकी पीड़ा हरने वाली, मां जय-जय हो बारम्बार

सर्वस्वरूपा माँ सर्वेश्वरी, सर्वशक्ति संपन्न
रक्षा करो हे माता हमारी कष्ट न हों उत्पन्न
हो प्रसन्न जब माता रानी, रोगों का हो जाता नाश
कुपित रूप करता है माँ, कामनाओं का ह्रास

तेरी शरण मिले माँ जिनको, मिट जाते उनके सब कष्ट
देते हैं वे शरण सभी को, होते नहीं कभी पथभ्रष्ट
तीनों लोकों की हे मैया, कर दो सब बाधा शांत
हे माते! शत्रु का नाश करो अब, हम न हों भयाक्रांत.

।। हिंदी पाठ संपूर्ण।।

ध्यान देंः भक्तजनों को प्रयास करना चाहिए कि वे संस्कृत वाले श्लोकों का ही उच्चारण करें.

उनका विच्छेद करके बहुत सरल कर दिया गया है. साथ ही साथ श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक की पूजा के बाद ही उस पुस्तक से सप्तश्लोकी दुर्गा पाठ आरंभ करें

सप्तश्लोकी दुर्गा या मां दुर्गा की किसी भी आराधना-उपासना के बाद माता का क्षमा प्रार्थना स्तोत्र अवश्य पढ़ लें और उसके बाद माता से दंडवत होकर क्षमा प्रार्थना अवश्य कर लें.

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

शारदा पूजन विधि

गीता के सिद्ध मन्त्र

रामचरित मानस की चोपाई से कार्य सिद्ध