पीपल वृक्ष का महत्व

रविवार को पीपल में दरिद्रता का वास होता है।पीपल से जुड़े महत्वपूर्ण बातें
देववृक्ष है पीपल.....
पीपल के वृक्ष द्वारा कष्ट दूर करें..
अथर्ववेद में पीपल के पेड़ को देवताओं का निवास बताया गया है– अश्वत्थो देव सदन:।भारतीय लोकजीवन में पीपल का पेड़ देवता है, उपास्य है, पूज्य है। श्रद्धालु पीपल के पेड़ को नमस्कार करते हैं और उसे ब्रह्म का निवास मानते हैं। विश्वदर्शन में पीपल का महत्व है। महात्मा बुद्ध का बोध–निर्वाण पीपल की घनी छाया से जुड़ा हुआ है। पीपल की छाया तप, साधना के लिए ऋषियों का प्रिय स्थल माना जाता था। पीपल वृ़क्ष पर बैठे दो पक्षियों का प्रतीक और दर्शन ऋग्वेद, अथर्ववेद व मुण्डकोपनिषद में एक साथ ज्यों के त्यों मौजूद हैं।

पीपल का वृ़क्ष आधुनिक भारत में भी देवरूप में पूजा जाता है। सिन्धु घाटी की खुदाई से प्राप्त मोहनजोदड़ो की एक मुद्रा में पीपलवासी देवता पत्तियों से घिरे हुए हैं। मुद्रा में ऊपर पांच मानव आकृतियां हैं। कतिपय विद्वान हड़प्पा सभ्यता को वैदिक नहीं मानते। ऋग्वेद  में अश्वत्थ–पीपल वृक्ष के निकट ऋत्विज बैठे हैं। हड़प्पा मुद्रा की पांच मानव आकृतियां ऋग्वेद में वर्णित पांच जन हो सकती हैं। मोहनजोदड़ो की एक मुद्रा में पीपल पत्तियों के भीतर देवता हैं। हड़प्पा सभ्यता में पीपल की छाया है और पीपल देवता हैं। ऋग्वेद से लेकर समूचे उपनिषद साहित्य और गीता में भी पीपल की प्रतिष्ठा है।

भारतीय संस्कृति में पीपल देववृक्ष है, इसके सात्विक प्रभाव के स्पर्श से अन्त: चेतना पुलकित और प्रफुल्लित होती है। पीपल वृक्ष प्राचीन काल से ही भारतीय जनमानस में विशेष रूप से पूजनीय रहा है। ग्रंथों में पीपल को प्रत्यक्ष देवता की संज्ञा दी गई है। स्कन्दपुराणमें वर्णित है कि अश्वत्थ(पीपल) के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में श्रीहरि और फलों में सभी देवताओं के साथ अच्युत सदैव निवास करते हैं। पीपल भगवान विष्णु का जीवन्त और पूर्णत:मूर्तिमान स्वरूप है। यह सभी अभीष्टोंका साधक है। इसका आश्रय मानव के सभी पाप ताप का शमन करता है। भगवान कृष्ण कहते हैं-अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणांअर्थात् समस्त वृक्षों में मैं पीपल का वृक्ष हूं। स्वयं भगवान ने उससे अपनी उपमा देकर पीपल के देवत्व और दिव्यत्वको व्यक्त किया है। शास्त्रों में वर्णित है कि अश्वत्थ: पूजितोयत्र पूजिता:सर्व देवता:। अर्थात् पीपल की सविधि पूजा-अर्चना करने से सम्पूर्ण देवता स्वयं ही पूजित हो जाते हैं। पीपल का वृक्ष लगाने वाले की वंश परम्परा कभी विनष्ट नहीं होती।

पीपल की सेवा करने वाले सद्गति प्राप्त करते हैं। पीपल वृक्ष की प्रार्थना के लिए अश्वत्थस्तोत्रम्में दिया गया मंत्र है-अश्वत्थ सुमहाभागसुभग प्रियदर्शन। इष्टकामांश्चमेदेहिशत्रुभ्यस्तुपराभवम्॥आयु: प्रजांधनंधान्यंसौभाग्यंसर्व संपदं।देहिदेवि महावृक्षत्वामहंशरणंगत:॥वृहस्पतिकी प्रतिकूलता से उत्पन्न होने वाले अशुभ फल में पीपल समिधा से हवन करने पर शांति मिलती है। प्राय: यज्ञ में इसकी समिधा को बडा उपयोगी और महत्वपूर्ण माना गया है। प्रसिद्ध ग्रन्थ व्रतराज में अश्वत्थोपासनामें पीपल वृक्ष की महिमा का उल्लेख है। इसमें अर्थवणऋषि पिप्पलादमुनि को बताते हैं कि प्राचीन काल में दैत्यों के अत्याचारों से पीडित समस्त देवता जब विष्णु के पास गए और उनसे कष्ट मुक्ति का उपाय पूछा, तब प्रभु ने उत्तर दिया-मैं अश्वत्थ के रूप में भूतल पर प्रत्यक्षत:विद्यमान हूं।

आप सभी को सब प्रकार से पीपल वृक्ष की आराधना करनी चाहिए। इसके पूजन से यम लोक के दारुण दु:ख से मुक्ति मिलती है। अश्वत्थोपनयनव्रत में महर्षि शौनकवर्णित करते हैं कि मंगल मुहूर्त में पीपल के वृक्ष को लगाकर आठ वर्षो तक पुत्र की भांति उसका लालन-पालन करना चाहिए। इसके अनन्तर उपनयनसंस्कार करके नित्य सम्यक् पूजा करने से अक्षय लक्ष्मी मिलती हैं। पीपल वृक्ष की नित्य तीन बार परिक्रमा करने और जल चढाने पर दरिद्रता, दु:ख और दुर्भाग्य का विनाश होता है।

पीपल के दर्शन-पूजन से दीर्घायु तथा समृद्धि प्राप्त होती है। अश्वत्थ व्रत अनुष्ठान से कन्या अखण्ड सौभाग्य पाती है। शनिवार की अमावस्या को पीपल वृक्ष के पूजन और सात परिक्रमा करने से तथा काले तिल से युक्त सरसोतेल के दीपक को जलाकर छायादानसे शनि की पीडा का शमन होता है। अथर्ववेदके उपवेद आयुर्वेद में पीपल के औषधीय गुणों का अनेक असाध्य रोगों में उपयोग वर्णित है। अनुराधा नक्षत्र से युक्त शनिवार की अमावस्या में पीपल वृक्ष के पूजन से शनि से मुक्ति प्राप्त होती है।
श्रावण मास में अमावस्या की समाप्ति पर पीपल वृक्ष के नीचे शनिवार के दिन हनुमान की पूजा करने से बडे संकट से मुक्ति मिल जाती है। पीपल का वृक्ष इसीलिए ब्रह्मस्थानहै। इससे सात्विकताबढती है। पीपल के वृक्ष के नीचे मंत्र,जप और ध्यान उपादेय रहता है। श्रीमद्भागवत् में वर्णित है कि द्वापरयुगमें परमधाम जाने से पूर्व योगेश्वर श्रीकृष्ण इस दिव्य पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान में लीन हुए। इसका प्रभाव तन-मन तक ही नहीं भाव जगत तक रहता है।

पीपल की सेवा प्रत्येक शनिवार करने से शनिदेव प्रसन्न होते है सांयकाल के समय पीपल के नीचे मिट्टी के दीपक को सरसों के तेल से प्रज्ज्वलित कर अपने दुःख व मानसिक कष्ट दूर होते है.
पीपल की परिक्रमा सुबह सूर्योदय से पूर्व करने से अस्थमा रोग में राहत मिलती है.
पीपल के नीचे बैठ कर ध्यान करने से ज्ञान की वृद्धि हो कर मन सात्विकता की ओर बड़ता है.
यदि ग्यारह पीपल के वृक्ष नदी के किनारे लगाए जाय तो समस्त पापों का नाश होता है.
यदि ग्यारह नवनिर्मित मंदिरों में शुभ मुहूर्त में पीपल वृक्ष लगा कर चालीस दिनों तक इनकी सेवा या देखभाल (कहीं सूख ना जाये) करने पर उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती और जब तक वह जीवित रहता है तब तक उसके अपने परिवार में भी अकाल मृत्यु नही होती है.
अत: पीपल का वृक्ष आक्सीजन का भण्डार है यही आक्सीजन हमारे जीवन में भी आ कर हमे निरोग व सुख का मार्ग प्रशस्त करती रहती है.
मार्ग में जहां भी पीपल वृक्ष मिले उसे देव की तरह प्रणाम करने से भी लाभ होते है...

🌺पीपल की पूजा से जुड़ी कथाएँ

एक बार अगस्त्य ऋषि तीर्थयात्रा के उद्देश्य से दक्षिण दिशा में अपने शिष्यों के साथ गोमती नदी के तट पर पहुंचे और सत्रयाग की दीक्षा लेकर एक वर्ष तक यज्ञ करते रहे। उस समय स्वर्ग पर राक्षसों का राज था। कैटभ नामक राक्षस अश्वत्थ और पीपल वृक्ष का रूप धारण करके ब्राह्मणों द्वारा आयोजित यज्ञ को नष्ट कर देता था। जब कोई ब्राह्मण इन वृक्षों की समिधा के लिए टहनियां तोड़ने वृक्षों के पास जाता तो यह राक्षस उसे खा जाता और ऋषियों का पता भी नहीं चलता। धीरे-धीरे ऋषि कुमारों की संख्या कम होने लगी। तब दक्षिण तीर पर तपस्या रत मुनिगण सूर्य पुत्र शनि के पास गए और उन्हें अपनी समस्या बतायी। शनि ने विप्र का रूप धारण किया और पीपल के वृक्ष की प्रदक्षिणा करने लगा। अश्वत्थ राक्षस उसे साधारण विप्र समझकर निगल गया। शनि अश्वत्थ राक्षस के पेट में घूमकर उसकी आंतों को फाड़कर बाहर निकल आये। शनि ने यही हाल पीपल नामक राक्षस का किया। दोनों राक्षस नष्ट हो गए। ऋषियों ने शनि का स्तवन कर उसे खूब आशीर्वाद दिया। तब शनि ने प्रसन्न होकर कहा - अब आप निर्भय हो जाओ। मेरा वरदान है कि जो भी व्यक्ति शनिवार के दिन पीपल के समीप आकर स्नान, ध्यान व हवन व पूजा करेगा और प्रदक्षिणा कर जल से सींचेगा, साथ में सरसों के तेल का दीपक जलाएगा तो वह ग्रह जन्य पीड़ा से मुक्त हो जाएगा। शनि के उक्त वरदान के बाद भारत में पीपल की पूजा-अर्चना होने लगी। अमावस के शनिवार को उस पीपल पर जिसके नीचे हनुमान स्थापित हों, जाकर दर्शन व पूजा करने से शनि-जन्य दोषों से मुक्ति मिलती है। ग्रह शान्ति की प्रक्रिया में बृहस्पति की प्रसन्नता हेतु पीपल समिधाओं की घृत के साथ यज्ञ में आहुति दी जाती है। सामान्यतः बिना नागा प्रतिदिन पीपल के वृक्ष की जड़ पर जल चढ़ाने से या उसकी सेवा करने से बृहस्पति देव प्रसन्न होते हैं और मनोकांक्षा पूर्ण करते हैं। अत: पीपल जीवन दाता वृक्ष और बृहस्पति भी जीव प्रदाता है। एक कथा और प्रचलित है। पिप्पलाद मुनि के पिता का बाल्यावस्था में ही देहान्त हो गया था। यमुना नदी के तट पर पीपल की छाया में तपस्यारत पिता की अकाल मृत्यु का कारण शनिजन्य पीड़ा थी। उनकी माता ने उसे अपने पति की मृत्यु का एकमात्र कारण शनि का प्रकोप बताया। मुनि पिप्पलाद जब वयस्क हुए। उनकी तपस्या पूर्ण हो गई तब माता से सारे तथ्य जानकर पितृहन्ता शनि के प्रति पिप्पलाद का क्रोध भड़क उठा। उन्होंने तीनों लोकों में शनि को ढूंढना प्रारम्भ कर दिया। एक दिन अकस्मात पीपल वृक्ष पर शनि के दर्शन हो गए। मुनि ने तुरन्त ब्रह्मदण्ड उठाया और उसका प्रहार शनि पर कर दिया। शनि यह भीषण प्रहार सहन करने में असमर्थ थे। वे भागने लगे। ब्रह्मदण्ड ने उनका तीनों लोकों में पीछा किया और अन्ततः भागते हुए शनि के दोनों पैर तोड़ डाले। शनि विकलांग हो गए। उन्होंने शिव जी से प्रार्थना की। शिवजी प्रकट हुए और पिप्पलाद मुनि से बोले- शनि ने सृष्टि के नियमों का पालन किया है। उन्होंने श्रेष्ठ न्यायाधीश सदृश दण्ड दिया है। तुम्हारे पिता की मृत्यु पूर्वजन्म कृत पापों के परिणाम स्वरूप हुई है। इसमें शनि का कोई दोष नहीं है। शिवजी से जानकर पिप्पलाद मुनि ने शनि को क्षमा कर दिया। तब पिप्पलाद मुनि ने कहा- जो व्यक्ति इस कथा का ध्यान करते हुए पीपल के नीचे शनि देव की पूजा करेगा। उसके शनि जन्य कष्ट दूर हो जाएंगे। पिप्पलेश्वर महादेव की अर्चना शनि जनित कष्टों से मुक्ति दिलाती है। पीपल की उपासना शनिजन्य कष्टों से मुक्ति पाने के लिए की जाती है। यह सत्य है और अनुभूत है। आप शनि पीड़ा से पीड़ित हैं तो सात शनिश्चरी अमावास्या को या सात शनिवार पीपल की उपासना कर उसके नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएंगे तो आप कष्ट मुक्त हो जाएंगे। शनिवार को पीपल पर जल व तेल चढ़ाना, दीप जलाना, पूजा करना या परिक्रमा लगाना अति शुभ होता है। धर्मशास्त्रों में वर्णन है कि पीपल पूजा केवल शनिवार को ही करनी चाहिए। पुराणों में आई कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के समय लक्ष्मीजी से पूर्व उनकी बडी बहन, अलक्ष्मी (ज्येष्ठा या दरिद्रा) उत्पन्न हुई, तत्पश्चात् लक्ष्मीजी। लक्ष्मीजी ने श्रीविष्णु का वरण कर लिया। इससे ज्येष्ठा नाराज़ हो गई। तब श्रीविष्णु ने उन अलक्ष्मी को अपने प्रिय वृक्ष और वास स्थान पीपल के वृक्ष में रहने का आदेश दिया और कहा कि यहाँ तुम आराधना करो। मैं समय-समय पर तुमसे मिलने आता रहूँगा एवं लक्ष्मीजी ने भी कहा कि मैं प्रत्येक शनिवार तुमसे मिलने पीपल वृक्ष पर आया करूँगी। शनिवार को श्रीविष्णु और लक्ष्मीजी पीपल वृक्ष के तने में निवास करते हैं। इसलिए शनिवार को पीपल वृक्ष की पूजा, दीपदान, जल व तेल चढाने और परिक्रमा लगाने से पुण्य की प्राप्त होती है और लक्ष्मी नारायण भगवान व शनिदेव की प्रसन्नता होती है जिससे कष्ट कम होते हैं और धन-धान्य की वृद्धि होती है। मां लक्ष्मी के परिवार में उनकी एक बड़ी बहन भी है जिसका नाम है दरिद्रा। इस संबंध में एक पौराणिक कथा है कि इन दोनों बहनों के पास रहने का कोई निश्चित स्थान नहीं था। इसलिये एक बार मां लक्ष्मी और उनकी बड़ी बहन दरिद्रा भगवान विष्णु के पास गईं और उनसे बोली, जगत के पालनहार कृपया हमें रहने का स्थान दो? पीपल को विष्णु भगवान से वरदान प्राप्त था कि जो व्यक्ति शनिवार को पीपल की पूजा करेगा, उसके घर का ऐश्वर्य कभी नष्ट नहीं होगा अतः श्री विष्णु ने कहा, आप दोनों पीपल के वृक्ष पर वास करो। इस तरह वे दोनों बहनें पीपल के वृक्ष में रहने लगी। जब विष्णु भगवान ने मां लक्ष्मी से विवाह करना चाहा तो लक्ष्मी माता ने इंकार कर दिया क्योंकि उनकी बड़ी बहन दरिद्रा का विवाह नहीं हुआ था। उनके विवाह के उपरांत ही वह श्री विष्णु से विवाह कर सकती थी। अत: उन्होंने दरिद्रा से पूछा, वो कैसा वर पाना चाहती हैं, तो वह बोली कि, वह ऐसा पति चाहती हैं जो कभी पूजा-पाठ न करे व उसे ऐसे स्थान पर रखे जहां कोई भी पूजा-पाठ न करता हो। श्री विष्णु ने उनके लिए ऋषि नामक वर चुना और दोनों विवाह सूत्र में बंध गए। अब दरिद्रा की शर्तानुसार उन दोनों को ऐसे स्थान पर वास करना था जहां कोई भी धर्म कार्य न होता हो। ऋषि उसके लिए उसका मन भावन स्थान ढूंढने निकल पड़े लेकिन उन्हें कहीं पर भी ऐसा स्थान न मिला। दरिद्रा उनके इंतजार में विलाप करने लगी। श्री विष्णु ने पुन: लक्ष्मी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा तो लक्ष्मी जी बोली, जब तक मेरी बहन की गृहस्थी नहीं बसती मैं विवाह नहीं करूंगी। धरती पर ऐसा कोई स्थान नहीं है, जहां कोई धर्म कार्य न होता हो। उन्होंने अपने निवास स्थान पीपल को रविवार के लिए दरिद्रा व उसके पति को दे दिया। अत: हर रविवार पीपल के नीचे देवताओं का वास न होकर दरिद्रा का वास होता है। अत: इस दिन पीपल की पूजा वर्जित मानी जाती है। पीपल को विष्णु भगवान से वरदान प्राप्त है कि जो व्यक्ति शनिवार को पीपल की पूजा करेगा, उस पर लक्ष्मी की अपार कृपा रहेगी और उसके घर का ऐश्वर्य कभी नष्ट नहीं होगा। इसी लोक विश्वास के आधार पर लोग पीपल के वृक्ष को काटने से आज भी डरते हैं, लेकिन यह भी बताया गया है कि यदि पीपल के वृक्ष को काटना बहुत जरूरी हो तो उसे रविवार को ही काटा जा सकता है।

🌞सूर्योदय से पूर्व पीपल पर दरिद्रता और सूर्योदय के बाद लक्ष्मी जी का अधिकार

हिंदू धर्म में पीपल के वृक्ष को बहुत ही पवित्र माना गया है। ऐसी मान्यता है कि जिसके घर में पीपल का वृक्ष होता है उसके घर कभी दरिद्रता नहीं आती और सुख-शांति बनी रहती है। विज्ञान ने भी पीपल के वृक्ष के महत्व को माना है। यहां हम आपको बता रहे हैं पीपल के वृक्ष से जुड़े कुछ तंत्र उपाय, जिससे आपकी कई समस्याओं का निदान हो जाएगा।

उपाय

धन प्राप्ति के लिए

पीपल के पेड़ के नीचे शिव प्रतिमा स्थापित करके उस पर प्रतिदिन जल चढ़ाएं और पूजन-अर्चन करें। कम से कम 5 या 11 माला मंत्र का जप(ऊँ नम: शिवाय) करें। कुछ दिन नियमित साधना के बाद परिणाम आप स्वयं अनुभव करेंगे। प्रतिमा को धूप-दीप से शाम को भी पूजना चाहिए।

हनुमानजी की कृपा पाने के लिए

हनुमानजी की कृपा पाने के लिए भी पीपल के वृक्ष की पूजा करना शुभ होता है। पीपल के वृक्ष के नीचे नियमित रूप से बैठकर हनुमानजी का पूजन, स्तवन करने से हनुमानजी प्रसन्न होते हैं और साधक की हर मनोकामना पूरी करते हैं।

शनि दोष से बचने के लिए

शनि दोष निवारण के लिए भी पीपल की पूजा करना श्रेष्ठ उपाय है। यदि रोज पीपल पर जल चढ़ाया जाए तो शनि दोष की शांति होती है। शनिवार की शाम  पीपल के नीचे दीपक लगाएं और पश्चिममुखी होकर शनिदेव की पूजा करें तो और भी लाभकारी होता है।ऐसे कई धारणाये पीपल के वृक्ष को ले कर हम जी रहे हैं वास्तव में मूले विष्णु:स्थितो नित्यं स्कंधे केशव एव च।
नारायणस्तु शाखासु पत्रेषु भगवान हरि:।।
फलेऽच्युतो न सन्देह: सर्वदेवै: समन्वित:।।
स एवं ष्णिुद्र्रुम एव मूर्तो महात्मभि: सेवितपुण्यमूल:।
यस्याश्रय: पापसहस्त्रहन्ता भवेन्नृणां कामदुघो गुणाढ्य:।।
स्कंदपुराण/नागरखंड 247/41-42, 44
अर्थात ‘पीपल की जड़ में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान हरि और फल में सब देवताओं से युक्त अच्युत सदा निवास करते हैं। यह वृक्ष मूर्तिमान श्री विष्णुस्वरूप है। महात्मा पुरुष इस वृक्ष के पुण्यमल मूल की सेवा करते हैं। इसका गुणों से युक्त और कामनादायक आश्रय मनुष्यों के हजारों पापों का नाश करने वाला है।’
जो मनुष्य पीपल के वृक्ष को देखकर प्रणाम करता है, उसकी आयु बढ़ती है तथा जो इसके नीचे बैठकर धर्म-कर्म करता है, उसका कार्य पूर्ण हो जाता है। जो मूर्ख मनुष्य पीपल के वृक्ष को काटता है, उसे इससे होने वाले पाप से छूटने का कोई उपाय नहीं है। (पद्म पुराण, खंड 7 अ 12)
शनिदेव कहते हैं ‘मेरे दिन अर्थात शनिवार को जो मनुष्य नियमित रूप से पीपल के वृक्ष का स्पर्श करेंगे, उनके सब कार्य सिद्ध होंगे तथा मुझसे उनको कोई पीड़ा नहीं होगी। जो शनिवार को प्रात: काल उठकर पीपल के वृक्ष का स्पर्श करेंगे, उन्हें ग्रहजन पीड़ा नहीं होगी।
(ब्रह्मपुराण, अ 118)

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