सिद्ध कुंजिका स्रोत
सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्र
कुंजिका स्तोत्रएक अत्यधिक प्रभावशाली स्तोत्र है जो माँ दुर्गा का है| माँ दुर्गा को जगत माता का दर्जा दिया गया है | माँ दुर्गा को आदिशक्ति भी कहा जाता है | इस स्तोत्र को सिद्ध कुंजिका स्तोत्र कहा गया है।
जिसमे बहुत ही प्रभावशाली शब्द है, जो इंसान की हर एक परेशानी दूर करने में सक्षम है, आपके जीवन में आनेवाली बाधाए और विघ्नों को नाश करके आपके जीवन को सुखमय बना सकता है ये स्तोत्र | इस स्तोत्र का नित्य जप बहुत ही फलदायी है ।यह आपको जीवन में प्रगती करने में बहुत मदत करेगा | इस स्तोत्र को जागृत या सिद्ध स्तोत्र कहा गया है। जिसका मतलब है की ये स्वयंसिद्ध है, आपको इसे सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है | माँ दुर्गा की एक पुस्तिका है। जिसे दुर्गा सप्तशती या चंडी पाठ कहते है, जो भी माँ दुर्गा के सप्तशती का पाठ नवरात्रि में ९ दिन करता है, वह माँ दुर्गा को प्यारा बन जाता है, माँ उस पे बहुत ही प्रसन्ना रहती है।और उसे इच्छित वर प्रदान करती है ।और उसकी सर्व मनोकामना की पूर्ति करती है | लेकिन जो लोग यह पाठ नहीं कर पाते वह लोग इस सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठकर आपना जीवन धन्य बना सकते है | इस स्तोत्र को नवरात्री में 9 दिन तक रोज 9 बार पाठ करने से माँ दुर्गा का आशीर्वाद निश्चित मिलता ही है |
हर इंसान को इस स्तोत्र को अपने दैनिक पूजन में सम्मिलित कर लेना चाहिए | ब्रम्हमहुर्तजो की ४ बजे होता है और रात ११ बजे या सोने से पहले इसका जाप अत्यधिक फलदायी होता है | इस मंत्र का प्रभाव और भी बढ़ जाता है अगर आप सिद्ध दुर्गायंत्र के सामने इसका जाप करे |
कुंजिका का मतलब है "बहुत ही रहस्यमयी और गुप्त" | इस स्तोत्र को दुर्गा सप्तशती का मूल मंत्र बताया गया है और इसमें कई प्रभावशाली बीज मंत्र भी सम्मिलित किये गए है |
सबसे शक्तिशाली माँ दुर्गाका मंत्र है।
"ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चे " |
आप नीचे दिये गये स्तोत्र के पाठ के साथ रोजाना माँ दुर्गा के बीज मंत्र का जाप कर सकते है |
सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्र
शिव उवाच-
शृणु देवी प्रवक्ष्यामी कुंजिका-स्तोत्र-मुत्तमम् |
येन मंत्र-प्रभावेण चंडी-जापः शुभो भवेत् ||१||
न कवचम नार्गला-स्तोत्रं किल-कम न रहस्य-कम् |
न सूक्तम नापि ध्यानम च न न्यासो न च वर्चानम् ||२||
कुञ्जिका-पाठ-मात्रेण दुर्गा-पाठ-फलं लभेत् |
अति गृह्यतरं देवी देवा-नामपि दुर्लभम् ||३||
गोप-नियम प्रयत्नेन स्वयो-निरिव पार्वती |
मारनम मोहनम वश्यम स्तम्भनो-च्चा-टना-दिकम् |
पाठ-मात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिका-स्तोत्र-मुत्तमम् ||४||
अथमन्त्र
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे | ॐ ग्लौं हुं क्लीं जुं सः
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट स्वाहा
|| इतिमन्त्रः||
नमस्ते रुद्र-रुपिन्यै नमस्ते मधु-मर्दिनी |
नमः कैट-भहा-रीन्यै नमस्ते महिषा-र्दिनी ||१||
नमस्ते शुंभहंत्र्यै च निशुंभा-सूर-घातिनी ||२||
जाग्रतं हि महादेवी जपं सिद्धिं कुरुष्वमे |
ऐंकारी सृष्टी-रूपायै ह्रींकारी प्रती-पालिका ||३||
क्लीन्कारी काम-रुपिन्यै बीज-रूपे नमोस्तुते |
चामुण्डा चंड-घाती च यैकारी वर-दायिनी ||४||
विच्चे चाभ-यदा नित्यं नमस्ते मन्त्र-रूपिनी ||५||
धां धीं धुं धुर्जटे: पत्नी वां विं वुं वाग-धीश्वरी |
क्रां क्रीं क्रूंकालिका देवी शां शिं शूं मी शुभम कुरु ||६|
हुं हुं हुंकार-रुपिन्यै जं जं जं जंभ-नादिनी |
भ्रां भ्रीं भ्रूंभैरवी भद्रे भावान्यै ते नमो नमः ||७||
अं कं चं टं तं पं यं शं विं दूम ऐं विं हं क्षं
धीजाग्रम धीजाग्रम त्रोटय त्रोटय दीप्तम कुरु कुरु स्वाहा ||
पां पीं पूंपार्वती पूर्णा खां खीं खुं खेचरी तथा ||८||
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्र-सिद्धिं कुरुष्व मे ||
|| फलश्रुती ||
इदं तू कुन्जीका-स्तोत्रम मन्त्र-जागर्ति-हेतवे |
अभक्ते नैव दातव्यम गोपितम रक्ष पार्वती ||
यस्तु कुन्जीकया देवी हिनाम सप्तशती पठेत |
न तस्य जायते सिद्धिर-राण्यै रोदानं यथा ||
इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती
संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम् ।
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