पूजा साधना कुछ नियम

🍁पूजा साधना - उपयोगी बातें
● गणेशजी को तुलसी का पत्र छोड़ कर सब पत्र प्रिय हैं |
● भैरव की पूजा में तुलसी का ग्रहण नही है|
● कुंद का पुष्प शिव को माघ महीने को छोडकर निषेध है |
● बिना स्नान किये जो तुलसी पत्र जो तोड़ता है उसे देवता स्वीकार नही करते |
● रविवार को दूर्वा नही तोडनी चाहिए |
● केतकी पुष्प शिव को नही चढ़ाना चाहिए |
● केतकी पुष्प से कार्तिक माह में विष्णु की पूजा अवश्य करें |
● देवताओं के सामने प्रज्जवलित दीप को बुझाना नही चाहिए |
● शालिग्राम का आवाह्न तथा विसर्जन नही होता |
● जो मूर्ति स्थापित हो उसमे आवाहन और विसर्जन नही होता |
● तुलसीपत्र को मध्याहोंन्त्तर ग्रहण न करें |
● पूजा करते समय यदि गुरुदेव ,ज्येष्ठ व्यक्ति या पूज्य व्यक्ति आ जाए तो उनको उठ कर प्रणाम कर उनकी
आज्ञा से शेष कर्म को समाप्त करें |
● मिट्टी की मूर्ति का आवाहन और विसर्जन होता है और अंत में शास्त्रीयविधि से गंगा प्रवाह भी किया जाता है |
● कमल को पांच रात, बिल्वपत्र को दस रात और तुलसी को ग्यारह रात बाद शुद्ध करके पूजन के कार्य में लिया जा सकता है |
● पंचामृत में यदि सब वस्तु प्राप्त न हो सके तो केवल दुग्ध से स्नान कराने मात्र से पंचामृतजन्य फल जाता है |
● शालिग्राम पर अक्षत नही चढ़ता | लाल रंग मिश्रित चावल चढ़ाया जा सकता है |
● हाथ में धारण किये पुष्प, तांबे के पात्र में चन्दन और चर्म पात्र में गंगाजल अपवित्र हो जाते हैं |
● पिघला हुआ घृत और पतला चन्दन नही चढ़ाना चाहिए |
● दीपक से दीपक को जलाने से प्राणी दरिद्र और रोगी होता है |
● दक्षिणाभिमुख दीपक को न रखे |
● देवी के बाएं और दाहिने दीपक रखें |
● दीपक से अगरबत्ती जलाना भी दरिद्रता का कारक होता है |
● द्वादशी, संक्रांति, रविवार, पक्षान्त और संध्याकाळ में तुलसीपत्र न तोड़ें |
● प्रतिदिन की पूजा में सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य चढाएं |
● आसन, शयन, दान, भोजन, वस्त्र संग्रह, विवाद और विवाह के समयों पर छींक शुभ मानी गयी है |
● जो मलिन वस्त्र पहनकर, मूषक आदि के काटे वस्त्र, केशादि बाल कर्तन युक्त और मुख दुर्गन्ध युक्त हो, जप आदि करता है उसे देवता नाश कर देते हैं |
● मिट्टी, गोबर को निशा में और प्रदोष काल में गोमूत्र को ग्रहण न करें |
● मूर्ती स्नान में मूर्ती को अंगूठे से न रगड़े ।
● पीपल को नित्य नमस्कार पूर्वाह्न के पश्चात् दोपहर में ही करना चाहिए | इसके बाद न करें |
● जहाँ अपूज्यों की पूजा होती है और विद्वानों का अनादर होता है, उस स्थान पर दुर्भिक्ष, मरण, और भय उत्पन्न होता है |
● पौष मास की शुक्ल दशमी तिथि , चैत्र की शुक्ल पंचमी और श्रावण की पूर्णिमा तिथि को लक्ष्मी प्राप्ति के लिए लक्ष्मी का पूजन करें |
● कृष्णपक्ष में, रिक्तिका तिथि में, श्रवणादी नक्षत्र में लक्ष्मी की पूजा न करें |
● अपराह्नकाल में, रात्रि में, कृष्ण पक्ष में,
द्वादशी तिथि में और अष्टमी को लक्ष्मी का पूजन प्रारम्भ न करें |
● मंडप के नव भाग होते हैं, वे सब बराबर-बराबर के होते हैं अर्थात् मंडप सब तरफ से चतुरासन होता है | अर्थात् टेढ़ा नही होता |
● जिस कुंड की श्रृंगार द्वारा रचना नही होती वह यजमान का नाश करता है |

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